नदी याद की ये सुहानी नहीं है,
बहे या रुके अब रवानी नहीं है।
दबी बात मन की मुझे याद आई,
सही बात है ये कहानी नहीं है।
खुशी जो गुम गई समय की गली में,
मुझे आज वापस बुलानी नहीं है।
भुला ही चुके है जहां में सभी जो,
मुझे दासता वो सुनानी नहीं है।
रहा है करीबी यही दर्द हमेशा,
मुझे दूरियां अब जतानी नहीं है।
सहा किस तरह दर्द हंसी के सहारे,
मुझे बात ये अब बतानी नहीं है।
अधूरी रही 'प्रीत' कैसी शिकायत,
मुझे बात आगे बढ़ानी नही है।,...प्रीति सुराना
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