Saturday, 18 June 2016

सिर्फ तुम्ही तुम हो,....

सुबह से रात तक
यूं तो तुम ही तुम हो मगर
तुम
कोई सूरज,
कोई चांद,
कोई तारों भरा आसमान नहीं,..

खिज़ा से बहार तक
यूं तो तुम ही तुम हो मगर
तुम
कोई फूल,
कोई खुशबू,
कोई हसीन शाम नहीं,..

एहसास से एतबार तक
यूं तो तुम्ही तू हो मगर
तुम
कोई ज़िद,
कोई ख़्वाहिश,
कोई ख़्वाब नहीं,..

जिस्म से रूह तक 
यूं तो तुम्ही तुम हो मगर
तुम 
कोई चेहरा,
कोई आकार,
कोई नाम नही,..

तुम आगाज़ मेरे जीवन का
और अंजाम भी तुम्ही तुम हो,
तुम प्रेम,
तुम हिम्मत,
तुम कल्पना
मेरे मन की,..

सुनो!
मुझमे
मैं नहीं
सिर्फ
तुम्ही तुम हो,.... प्रीति सुराना

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