वो देखो
वो पंछी,..
जो अचेतनावस्था में
पड़ा है ज़मीन पर
समझती हूं
पीड़ा
उस घायल पंछी की,..
जानती हूं
आसमान में अभी भी
उड़ रहे उस पंछी के मोह में
जान लगा दी होगी
और प्रेम में समर्पित होकर
भरी होगी सपनों को
हकीकत बनाने की खातिर उड़ान,..
और
अचानक
हकीकत ने मारी होगी
जोर की ठोकर,..
जर्जर हुए परों के साथ
आसमान से सीधे जमींन पर
ला पटका किस्मत ने,..
और देखो न वो
ऊपर उड़ता पंछी
जो कुछ देर पहले
इन्ही जख़्मी पंखों की उड़ान की
वज़ह, हिम्मत और गुरुर था,
अब भी वहीं से देख रहा
पर नीचे नहीं उतरा,..
क्योंकि
वह जानता है
टूटे पंखों से
फिर ऊंची उड़ान संभव नहीं
तो क्यों किया जाए
अपना वक़्त ज़ाया,..
उड़ गया वो
पर मैं समझ रही हूं
पीड़ा
पंछी के घायल मन की
मेरे अनुभवी अंतर्मन ने
समझ लिया सारा दर्द,..
सुनो!
मैं
जानती हूँ
अब कभी नहीं उड़ सकेगा
वो भी
मेरे
घायल मन की तरह,...प्रीति सुराना
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