Sunday, 12 June 2016

कई दिनों से,...

कई दिनों से न तारे हंसे न आंगन में चांद दिखा
रातों का कला रंग भी थोडा गहरा गहरा सा है।

उखड़ा सा है मन मेरा भीगी भीगी सी पलकें है
उखड़ती हुई सांसों का बाकी बस कतरा सा है।

खुशियों ने मेरे जीवन में आना जाना छोड़ दिया
हर मोड़ पर लगता है गमों का सख़्त सा पहरा है।

सागर छलका करते थे कभी प्यार मोहब्बत के
आज वो दिल लगता है जैसे वीरान सा सहरा है।

कई दिनो से न कोई फूल खिला न चमन महका,
जब से वो मुझसे रुठ गए सब कुछ ठहरा सा है। ,.. प्रीति सुराना

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