सुनो!!
तुम उष्णता हो
सूरज की किरणों सी,..
जो मेरे वजूद को परिपक्व करते हो,
तुम शीतलता हो
आइसक्रीम की मिठास सी,..
जो मेरे अस्तित्व को माधुर्य प्रदान करते हो,
और मैं
बर्फ सी कठोर
तुम्हारी उष्णता मिले तो
पिघलकर बह जाऊं,
ताप मिले
या भाप बनकर उड़ जाऊं,
शीतलता मिले तो
तुम सी मीठी हो जाऊं,...
जैसा चाहो बदल दो मेरा स्वरुप
पर रहूंगी हमेशा
जल सी हर रूप में,..
नारी जो हूं
पुरुष प्रधान देश की,...प्रीति सुराना
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