Monday 2 May 2016

हक़ नहीं मेरा

हां!
अच्छा किया
खुद कह दिया तुमने,..
तुम पर कोई हक़ नहीं मेरा,..

अब
तुम्हारे दिल की
बगिया की मालन नहीं मैं,..

अब मालकिन बनकर
अपने ही मन के आंगन में
दर्द बोकर आंसुओं से सीचूंगी,...

अब दर्द भी मेरे,
आंसू भी मेरे,
दर्द की फसल भी मेरी,...

तुम्हारी खुशियां तुझे मुबारक !
पर रखना ख्याल अपनी खुशियों का,
कहीं मुरझा न जाए,..

बहुत हिफाज़त से की है
मैंने परवरिश इनकी,
इन्हें आदत नहीं मेरी तरह उपेक्षा सह लेने की,...

मैं तो जी लूंगी दर्द के सहारे
पर तुम्हारी खुशियां नहीं सह पाएंगी उपेक्षा,
बड़ी नाजुक हैं ये,..। ,....प्रीति सुराना

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