Sunday 24 April 2016

व्यथा प्रकृति की हायकु में


1.
बने घरोंदा-
तिनके जुड़कर,
अकेले हम।
२.
बरसा पानी-
बह गई फसलें,
भूखी धरती।
3.
आई दरारें-
सूखी धरती पर,
फटी एड़ियां।
4.
सूखी टहनी,
पतझड़ ऋतु में-
भटके पंछी।
5.
अकाल मृत्यु,
आया धरती पर-
जलसंकट।
6.
निगली बेटी,
दहेज़ का दानव-
पैसे का भूखा।
7.
नई किरण,
मेहनत की बेला-
भोर हो गई।
8.
घना अंधेरा,
अब डरना कैसा-
सुबह होगी।
9.
दुर्घटनाएं,
असमय घटित-
अनभिज्ञ भू।
10.
कोई टूटे तो
मत मांगना मन्नत-
भोर का तारा।
11.
टूटी कलम
कर्म ही लिखते हैं-
भाग्य का लेख।
12.
जैसी करनी-
वैसे ही कर्मफल,
चुभते कांटे।
13.
सूखी धरा से
उगेगी भूखमरी
जल बचाओ।
14.
नींव में भूल-
भवन में दरारें,
नीढ़ उजड़ा।
15.
सूखी बारिश-
तरबतर गर्मी,
ठंड गायब।

प्रीति सुराना

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