कर लेखनी प्रखर
शब्द शब्द ओज भर
यूँ नहीं किसी से' डर
तू बना नया समाज,..
रूप तू प्रचंड धर
दुष्टता पे' वार कर
हो सदैव तू निडर
है यही जरुरी आज,..
जो नही हुआ निडर
जाएगा सब बिखर
बुराई का नाश कर
कर बड़े बड़े काज,..
लेखनी की धार पर
भावना प्रसार कर
तू बसा नया शहर
जहाँ प्रीत का हो राज,.
.प्रीति सुराना
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