Monday 11 April 2016

प्रेम (कृपाण घनाक्षरी)

मत रह भयभीत
      सुन ले ओ मेरे मीत
यही तो है प्रेम रीत
      प्रेम का दे पारावार

जारी रहे बातचीत
      रहे भावना पुनीत
खेल न यूं हार जीत
      बातों को दे दे आधार

बन प्रेम का प्रणीत
       भूलकर के अतीत
जो गया वो गया बीत
       सुखों को दे दे आकार

लिख रही प्रेम गीत
       इसको दे स्वर मीत
बना आज नई रीत
       दे दे प्रेम को विस्तार,.....प्रीति सुराना

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