Sunday 10 April 2016

बंसी तो बजाइये

छेड़ रहे नन्दलाल
    नदिया पे ग्वालबाल
राधा रानी रूठ गई
      कान्हा जी मनाइये

घने जंगलो में गई
    गोपियों के संग राधा
भूल गई राह अब
     ढूंढ के तो लाइए

नित नित नई बातें
    राधा रानी झेलती है
नटखट श्याम उन्हें
     ऐसे न सताइये

राधा रानी विरहन
      तड़पे मन ही मन
सुनने को प्रेमधुन
       बंसी तो बजाइये,...प्रीति सुराना

1 comment: