छेड़ रहे नन्दलाल
नदिया पे ग्वालबाल
राधा रानी रूठ गई
कान्हा जी मनाइये
घने जंगलो में गई
गोपियों के संग राधा
भूल गई राह अब
ढूंढ के तो लाइए
नित नित नई बातें
राधा रानी झेलती है
नटखट श्याम उन्हें
ऐसे न सताइये
राधा रानी विरहन
तड़पे मन ही मन
सुनने को प्रेमधुन
बंसी तो बजाइये,...प्रीति सुराना
सुन्दर रचना !
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