Wednesday 13 April 2016

दिल सुलगाया है

एक कोशिश

बहर:- 2222 2222 222
काफ़िया :-आया
रदीफ़:- है

वो भूला पल फिर यादों में आया है
जिस पल ने हरदम मुझको तरसाया है।

उनसे मिलने की घड़ियां कम ही तो थी
जब बिछड़े उस पल ने भी तड़पाया है।

निकले थे मिलकर भी आंसू आंखों से
बिछड़े तब भी मुझको रोना आया है।

हंसकर बहलाना ना आया इस दिल को
रो रो कर ही नादान समझ पाया है।

ये दुनियाँ सँग दिल सी लगती है मुझको
मुश्किल से ही अब दिल को बहलाया है।

'प्रीति' जहाँ से आस नही अब रखना तुम
इस  जग ने ही गम से दिल सुलगाया है। ,...प्रीति सुराना

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