Wednesday 13 April 2016

आस रहने दो


बहर :- 2221 2221 222
काफ़िया:- आस
रदीफ़ :- रहने दो।

कुछ यादें जरा सी पास रहने दो
इस मन को कभी न उदास रहने दो

चाहे ना रहोगे साथ मेरे तुम
पर हो साथ ये अहसास रहने दो,....

चाहे हो न हाथों में सहारा भी
पर मन में जरा सी आस रहने दो,..

अकसर सहम जाती हूं अकेले में,
अपनी धड़कने ही पास रहने दो,...

छूके जो हवाएं है गई तुमको,
उनमे भी तुम्हारा वास रहने दो,...

नजरे कर न पाए नज़र से बातें
पर तुम हो यही आभास रहने दो,...

माना हैं नदी के छोर हम दोनों
बहता प्रीत का इतिहास रहने दो,..

प्रीति सुराना

1 comment: