कुछ दर्द अभी भी चुभते हैं ;
कुछ जख्म अभी भी दुखते हैं।
पलकों तक आकर ये आंसू ;
फिर मुश्किल से ही रुकते हैं।
बाहर से हँसते फिरते हैं जो ;
दिल ही दिल में वो घुटते हैं।
दर्द जो समझे तनहा दिल के ;
वो उनके दिल में रुकते हैं ।
साथी न रहे जिसका कोई ;
वो तनहा ही तो रहते हैं।
तनहा खाली सड़कों पर ही ;
अक्सर सब ही तो मुड़ते हैं।।,.. प्रीति सुराना
बहुत बढ़िया
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