हां
सच
बेकार
नहीं था वो
बेरोजगार
भूखा मर जाता
आत्महत्या कर ली।
हां
जब
उसकी
डिग्रियों से
घर नहीं चलता
हमाली करता
अपनों से छुपकर।
वो
चोर
नहीं था
बनाया था
जरूरतों ने
भूख सालती थी
जिम्मेदारी चिढ़ाती।
की
विदा
बहन
उधार से
मां बीमार थी
पिता को लकवा
खुद बेरोजगार।
ये
युवा
हो जाते
गुमराह
जब न मिले
योग्यता का काम
जीवन तो जीना है।
जो
काम
न मिले
कर्मठ को
जरूरत है
मजदूरी करे
अपराधी क्यूं बने। ,... प्रीति सुराना
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