किसी ने कहा
जख्मों पर मरहम लगाओ
जल्दी भर जाएंगे,..
किसी ने कहा
जख्मों को खुला छोड़ दो
जल्दी सूख जाएंगे,..
किसी ने कहा
जख्मों को वक़्त पर छोड़ दो
जख्मों के साथ जीना सीख जाओगे,..
पर मेरा अनुभव कहता है
ये सब गलत,..
मरहम लगाया
तो नमक छिड़का गया,..
खुला छोड़ा
तो कुरेदा गया ,..
कैसे सीखे
कोई उन जख्मों के साथ जीना
जिसे वक़्त ने नासूर बना दिया,..
नासूर बने जख्म की तरह ही
टीसते हैं कुछ अहसास,..
जो अपने ही देते हैं
अपने ही जिनपर तानों के नमक डालते हैं
और अपने ही कुरेदते हैं,...
इन अहसासों के साथ न जीना सीख पाते हैं,
न इन्हें भूल पाते हैं,...
रह जाती है नियति इनकी
सिर्फ टीसते रहना,... प्रीति सुराना
टीस गहरी...
ReplyDelete