सुनो!!
मैंने कहीं पढ़ा था
"पैर की मोच और छोटी सोच इंसान को आगे बढ़ने नहीं देती"
और मैं इसे सच मानती थी,..
पर उम्र ने जैसे जैसे
अपने कदम बढ़ाए,..
कई बार कदम लड़खड़ाए,
कई बार चोटें सही,
कई बार हिम्मत टूटी,
हर बार मैंने इस बात को
अपने अनुभवों से जोड़कर देखा,..
कई बार पाया
छोटी सोच अगर बुरी नीयत वाली हो
तो इंसान हमेशा
अंततः हार ही जाता है,..
पर
छोटी-छोटी सकारात्मक सोच
छोटे-छोटे सपनें
और छोटी-छोटी ख्वाहिशें
अकसर उंचाईयों तक पहुंचने के लिए
कदम दर कदम
सीढ़ी बनती जाती है,..
यानि बुरी नीयत के साथ
सोच कितनी भी बड़ी हो,..
परिणाम शुरू-शुरू में कितने भी अच्छे हों,..
पर अंत हमेशा बुरा ही होता है,..
और अच्छी सोच
कितनी भी छोटी क्यों न हो
अगर सार्थक और सकारात्मक हो,..
तो हमें आगे बढ़ने में सहायक ही होगी,..
मेरे पैर की मोच ने
अनुभवों की बैसाखियों के सहारे
मेरी सोच में ये परिवर्तन किया,.
"पैर की मोच और छोटी सोच
आगे बढ़ने से तभी रोक सकती है,..
जब इच्छाशक्ति कमजोर और नज़रिया नकारात्मक हो,...!!!" ,... प्रीति सुराना
(दो दिन पहले आई मोच से बदली सोच,.. जरुरी नहीं सब सहमत हों 👏)
रात बीतेगी, दिन निकलेगा, मोच ठीक हो जायेगी।
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