"जिंदगी का सफ़र"
"22 जनवरी 1976 से 2016"
इन चालीस बरसों में जिंदगी ने बहुत दिया,..
कुछ खोने और कुछ पाने के सिलसिले चलते रहे,..
लोग मिलते रहे बिछड़ते रहे,..
1980 से 1992 तक
ननिहाल और महावीर स्कूल में बचपन की तमाम यादें,
लड़कपन की ढेरो शरारतें,
1993 से 1998 तक
कॉलेज के सुनहरे दिन,
आने वाले भविष्य के सपनें,
और लेखन का शुरुआती दौर,
1998 में शादी
समकित के साथ नए जीवन में कदम रखना,
1999 तन्मय का जन्म
मातृत्व की परम सुखद पहली अनभूति,
2001 जयति और जैनम् के रूप में
जुड़वा बच्चों को जन्म देने का अनूठा सुख,
2008 जीवन का एक नया मोड़
जिसने दी ढेर सारी जिम्मेदारियां,
संघर्ष और व्याधियां भी,
2011 मेरी जिंदगी का वो मोड़
जब व्याधियों के चलते समय बिताने के लिए मैंने सोशल नेटवर्क में कदम रखा,
2012 समकित की जिद से फिर से लेखन शुरू किया,..
ब्लॉग लेखन की शुरुआत,..
2013 मेरी पहली किताब "मन की बात" का प्रकाशन
दूसरी किताब "मेरा मन" का प्रकाशन,
तीसरी किताब 'सपनों के डेरे' का संपादन,
2015 में एक्यूप्रेशर का डिप्लोमा हासिल करना,
2016 तक कई साझा काव्यसंग्रहों का हिस्सा बनना,.. कई अख़बारों में रचनाओं का प्रकाशन,
दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल और
विश्व पुस्तक मेला का हिस्सा बनना,...
बचपन से दादी और नाना-नानी का असीम स्नेह,मम्मी-पापा का अपरिमित दुलार, बचपन से दोस्तों का अविस्मरणीय साथ, छोटे भाइयों और पूरे परिवार का प्यार और आशीर्वाद, समकित का प्रेम, ससुराल में सास-ससुर, देवर-ननद और समकित के सभी दोस्तों का ढेर सारा प्यार,सहयोग और आशीर्वाद,... तीन प्यारे प्यारे बच्चे, उनके भविष्य की जिम्मेदारियां,... सोशल नेटवर्क से मिले अनमोल रिश्ते और मित्र जो मेरी जिंदगी को पूरा करते हैं,..
पिछले चालीस साल का लेखाजोखा करने बैठी ये सोचकर की मैंने क्या खोया और क्या पाया,.... पर सच याद ही न रहा खोया क्या,... सिर्फ पाया ही पाया तो है मैंने,... और यक़ीनन
"इतना दिया जिंदगी ने कि शायद ही कोई कमी रही
पर ख़ुशी में ही सही आज भी आंखों में नमी रही"
जिंदगी तुझे करती हूं आज मैं तहे दिल से शुक्रिया,
तू न रुकी किसी ख़ुशी में,और शायद ही किसी गम में थमी रही" ,...प्रीति सुराना
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