Thursday, 8 October 2015

नींव में प्रेम

ज़रा सी आंधी चली
और जाने कितनी इमारतें
और मकान ढह गए,..
पर
बस गए वो लोग फिर से,.
कहीं और झोपड़ियां बनाकर ,.
जिनकी नींव में पत्थर नहीं प्रेम था,...प्रीति सुराना

1 comment:

  1. वाकई प्रेम कई महल बनवा देता है
    प्रेम का सच यही है
    बहुत सुंदर

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    सादर

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