ज़रा सी आंधी चली
और जाने कितनी इमारतें
और मकान ढह गए,..
पर
बस गए वो लोग फिर से,.
कहीं और झोपड़ियां बनाकर ,.
जिनकी नींव में पत्थर नहीं प्रेम था,...प्रीति सुराना
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ज़रा सी आंधी चली
और जाने कितनी इमारतें
और मकान ढह गए,..
पर
बस गए वो लोग फिर से,.
कहीं और झोपड़ियां बनाकर ,.
जिनकी नींव में पत्थर नहीं प्रेम था,...प्रीति सुराना
वाकई प्रेम कई महल बनवा देता है
ReplyDeleteप्रेम का सच यही है
बहुत सुंदर
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
सादर