Sunday 11 October 2015

सहानुभूति और साथ का फर्क

मैं हंसी
तो हसें अनेक मेरे साथ,..
रोई तो कुछ ने पोंछे आसूं
पर साथ कोई रोया नहीं,..
मैं नासमझ
तब समझी 

सहानुभूति और साथ का फर्क,...

और तब ही जाना बांटे बिना भी
हंसी और ख़ुशी का संक्रमण
तेजी से फैलता है,.....
पर ये बात
कि दुःख बांटने से कम होता है,..
मेरी समझ में कभी नहीं आई
मैंने तो अकसर अपनी जिंदगी में
दुःख में अपनों(,..???) को
कम होते देखा है,...प्रीति सुराना

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