हां !!बहुत मीठी हूं मैं,..
क्यूंकि
अच्छा लगता है
मुझे ये सुनकर
जब तुम कहते हो
"जितना मीठा-मीठा बोलती हो तुम
उतना ही ज्यादा तुम पर प्यार आता है"
सुनो!
तुम्हारे लिए समर्पण के भाव ने ही
मुझे तुम्हारे लिए
इतना मृदु और मधुर बना दिया है
और समर्पण के भाव
सिर्फ इसलिए है
क्यूंकि
तुमसे सिर्फ प्यार की अपेक्षा है,..!!
और
कोई बुराई नहीं लगती मुझे
तुम्हारे प्यार के लिए स्वार्थी होने में,...!!
इसकी वजह ये है
जब-जब
मैं दायित्वों के कटघरे में खुद को कमज़ोर पाती हूं,..
जब-जब
मन की कड़वाहटों पर अपना वश खोने लगती हूं,.
जब-जब
आत्मविश्वास की जड़ों को डगमगाता हुआ महसूस करती हूं,..
जब-जब
भीतर के खोखलेपन के टूटकर बिखरने के पूर्वाभास से घबरा जाती हूं,..
तब इस तरह स्वार्थी होकर
मैं इकट्ठा करती हूं खुद में
"सामर्थ्य का ईंधन"
क्यूंकि
जब-जब
मेरी मीठी-मीठी बातों से
तुम्हे मुझ पर प्यार आता है
तुम्हारा वही प्यार
तब-तब
मुझे अपने ऊपर ओढ़े हुए दायित्वों को पूरा करने का मजबूती देता है,..
तब-तब
मुझे तथाकथित अपनों से मिली कड़वाहट को गटक लेने का हौसला देता है,..
तब-तब
मुझे कोई तो प्यार करता है ये एहसास ही मुझमे आत्मविश्वास की जड़ों को जकड़े रखता है,..
तब-तब
मुझमें बसे खोखलेपन को भरकर मुझे भीतर भीतर बिखरने से बचाता है,..
इसलिए
मैं तुम्हारे लिए बहुत मीठी हो जाती हूं,..
हां सच,..
बहुत स्वार्थी हूं मैं,....प्रीति सुराना
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