"मेरा सवाल,..."
_____________
आइये आज आपको फिर से रुबरु करवाती हूं अपनी कुछ बेसिर-पैर की बातों से,.. आशा है आप धैर्यपूर्वक सुनेंगे और सलाह और सहयोग भी देंगे,..।अकसर सभी टी.वी. सीरियल्स के पहले एक चेतावनी आती है उसी से प्रेरित होकर हमेशा की तरह कुछ भी कहने के पूर्व ये स्पष्ट कर दूं कि मैं जो कुछ भी कहूंगी वो पूर्णतः मेरी व्यक्तिगत सोच है इसका किसी से किसी भी तरह का लेना देना नहीं है,.. बल्कि इत्तेफाक से यदि किसी से मेरी बातें अगर किसी भी बिंदु पर टकराती हैं या मेल कहती हैं और बुरा लगता है तो क्षमाप्रार्थी हूं हांलाकि व्यक्तिगत सोच के चलते इसमें मेरा कोई भी दोष नहीं है ।
हुआ यूं कि पिछले साल इन्ही दिनों हमारे घर के पीछे बनी हुई एक बहुत बड़ी कॉलोनी की कुछ महिलाऐं घर पर एक महिला समिति के गठन का प्रस्ताव लेकर आई थीं । स्वास्थ संबंधी समस्याओं के चलते मैंने उसने प्रेमपूर्वक इस आस्वासन के साथ विदा किया कि अगले वर्ष अगर कोई निजी समस्या नहीं हुई तो मैं आपसे जुड़ूंगी ।
आज सुबह लगभग दस बजे सात महिलाएं जिनमे से मैं सिर्फ तीन से ही परिचित थी घर पर पहुंची । अभिवादन के साथ आत्मीयतापूर्वक सभी मुझसे मिली। मैंने आदरपूर्वक सबको बिठाया और कुछ देर बैठकर क्षमा मांगते हुए जलपान की व्यवस्था के लिए उठकर पास ही अपने रसोईघर में गई । पहला सदमा मुझे तभी लगा जब मेरे उठते ही सबकी खुसुरपुसुर शुरु हुई । मैं भी महिला हूं जन्मजात गुण तो मुझमे भी विद्यमान है इसलिए रसोई के दरवाज़े के पास आकर सुनने की कोशिश करने लगी।
सबसे पहले मिसेस मिश्रा जो मुझसे पूर्व परिचित थी उन्होंने सबसे कहा कि ये मैडम लेखिका है बड़े बड़े प्रेस रिपोर्टर्स से पहचान है इसकी और पैसे भी ईमानदारी से देगी इसको छोड़ना मत वरना कल मिसेस वाजपेयी आकर इसे अपने ग्रुप में शामिल कर लेगी । है तो बड़ी होशियार पर थोड़ी घमण्डी है लेकिन बड़े काम की है इसलिए कोई छोटा मोटा पद का लालच देकर आज तो हाँ करवाकर ही जाना है । मैंने सिर पकड़ लिया जैसे तैसे चाय नाश्ता लेकर उनके पास पहूंची सब की सब संयत होकर बैठने लगी और अब तक मुझे घमण्डी कहने वाली महिलाऐं मुझे आप कहने लगी ।
फिर शुरु हुआ बातों का सिलसिला,..मिसेस मिश्रा ने कहा प्रीति जी अपने कहा था अगले वर्ष कमेटी में शामिल होंगी ।अगले हफ्ते रविवार को कमेटी के पुनर्गठन के लिए मीटिंग रखी है आपको आना भी है और कमेटी का सदस्य भी बनना है । मैंने पूछा पुनर्गठन क्यूं अभी तो एक वर्ष ही हुआ है ।वैसे कितने सदस्य हैं इस कमेटी में और क्या क्या गतिविधियां की आप लोगों ने बीते सालों में? उन्होंने कहा पिछले साल तेरह महिलाएं इस संगठन की सदस्य थी पर फंड और पदों को लेकर आपसी तनाव के कारण छह महिलाओं ने अपना अलग समूह बनाने का निर्णय लिया है इससे पहले की वो हमसे ज्यादा लोगों को जोड़ लें हमारी कमेटी आप जैसी अच्छे लोगों को जोड़कर मजबूत संगठन बना लेगी ताकि इस साल होने वाले सभी कार्यक्रमों में हम उनसे अच्छा काम कर सकें ।मैंने फिर पूछा आप लोगों ने पिछले साल क्या काम किये?
एक महिला जिन्हें मैं जानती नहीं थी उन्होंने बताना शुरु किया हमने गणेश उत्सव मनाया फिर नवदुर्गा का कार्यक्रम किया,दीवाली मनाई,.. फिर पार्षद चुनाव में अपनी सखी की ओर से प्रचार किया पर मिसेस वाजपेयी और उनके समूह के कारण हमारी सखी हार गई ।नगर स्वच्छता अभियान के दिन हम सातों ने मिलकर कॉलोनी में झाड़ू भी लगाई पर उनके समूह ने सिर्फ अपनी गली की सफाई की । फिर एक बार पिकनिक जाने की बात हुई जिसमे सबका चंदा देना जरुरी था पर किसी कारण न जा पाने से उन लोगों ने चंदा भी नहीं दिया जिससे पिकनिक में पैसे काम पड़ने से हम लोगों को ज्यादा खर्च उठाना पड़ा जिससे हमारे पति नाराज हुए इसी बात पर मिसेस वाजपेयी अपना अलग समूह बना कर हमारी समिति को कमजोर कर रही हैं । इसीलिए हम सब घर के कामकाज छोड़कर समिति के कामों में जुटी हैं ।
सच कहूं तो मेरा सर घूमने लगा। थोड़ी हिम्मत करके मैंने पूछा इस कमेटी का उद्देश्य क्या है?? तीसरी महिला जो शुरु से चुप बैठी थी उसने बोलना शुरु किया । हम महिलाएं दिन भर घर के कामों में व्यस्त होने के कारण देश और समाज के लिए कुछ कर ही नहीं पाती थी इसलिए समाज सुधार के उद्देश्य से ये समिति बनाई है। हमें देश के लिए कुछ करना चाहिए क्यूंकि हम अच्छे नागरिक हैं । आप एक लेखिका हैं हम चाहते हैं की आप भी घर से बाहर निकलिये अपने विचारों से देश को योगदान दीजिये। आपको समिति में एक अच्छे पद पर रखा जाएगा आप अपने स्वागत समारोह में अपने प्रेस वाले मित्रों को आमंत्रित करके अपना और समिति का नाम अखबारों में छपवाएंगी तो लोग आपको पहचानेंगे। आपका फायदा ही फायदा है समिति से जुड़कर फिर थोडा बहुत खर्च तो आप वहां कर ही सकती हैं आखिर नाम भी तो होगा,...।
उफ्फ्फ!!! अब मेरे सब्र का बांध टूट गया । मैंने कहा बस्सस्सस्स ! सबकी सब स्तब्ध होकर मुझे देखने लगी । सब चुप थीं । अब मैंने बोलना शुरु किया ।
मैंने कहा देखिये मैं देश की अच्छी नागरिक होने के लिए नाम, शोहरत, पैसा, पद, चुनाव-प्रचार, पिकनिक, त्यौहार मानाने और कॉलोनी की साफ-सफाई में कोई दिलचस्पी नहीं रखती। मैं लेखन का कार्य आत्मसंतुष्टि के लिए करती हूं जिसे सोशल मिडीया और अख़बारों में पढ़ा और सराहा जाता है और यही मेरे लेखन का पारिश्रमिक भी है और पारितोषक भी ।इसलिए इस तरह के सम्मान समारोहों की जरुरत मुझे नहीं है।समिति में पद की बजाय मैं कुशल गृहणी का पद पाकर ज्यादा संतुष्ट हूं व्यापर में पति को सहयोग करके घर का आर्थिक स्तर इसलिए सुधारने का प्रयास करती हूं ताकि हर त्यौहार अपने परिवार के साथ ख़ुशी ख़ुशी मानाने के साथ-साथ अनाथाश्रम के बच्चों और वृद्धाश्रम के बुजुर्गों में थोड़ी खुशियां बांट पाऊं। पिकनिक और भ्रमण पर मैं ऐसे स्थानों पर जाना चाहती हूं जहां मेरे साथ मेरा पूरा परिवार जा सके जिसके प्रमुख मेरे सास-ससुर हैं ।देश में वैसे ही राजनीति ने माहौल ख़राब कर रखा है वही बहुत है इसलिए मैं मोहल्ले की राजनीति में शामिल नहीं हो सकती। देश की नागरिक होने के कारण मेरा फ़र्ज़ बनता है की मैं देश को साफ सुथरा रखूं इसकी शुरुआत हमने अपने घर से करते हुए घर के सामने दो कचरे जे डिब्बे रखवाए हैं जिससे घर के साथ साथ मोहल्ले के कुछ समझदार लोग भी कचरा सड़क पर फेंकने की बजाय कचरे के डिब्बे में डालने लगे और धीरे धीरे मोहल्ले की सफाई का टेंशन कम हुआ क्यूंकि बचा हुआ काम नगरपालिका करवा देती है ।और पुरे मोहल्ले के बच्चों कल गणेश उत्सव पर एक नाटक के द्वारा ये भी समझाया की सड़क पर पड़े पत्थर या कचरे या कोई बड़ा सामान जो एक्सीडेंट का कारण बन सकता है उसे उठाकर सड़क के किनारे रख दें ताकि एक्सीडेंट की सम्भावना कम हो । आज आप सब भी आइयेगा शाम को हमारे आंगन में मैं और मेरे पति अपने बच्चों और उनके कुछ दोस्तों को फर्स्ट एड करना सिखाने वाले हैं । अब आप ही बताइये मैं आपकी समिति में कैसे शामिल हो पाउंगी जब मैं खुद के काम ही पूरे नहीं कर पाती ? और रहा सवाल मेरे अच्छे नागरिक होने या न होने का तो ये मैं तब तक नहीं साबित कर सकती जब तक खुद को और अपने परिजनों को एक भष्टाचार,व्यभिचार और तनावमुक्त माहौल नहीं दे दूं,..अच्छा नागरिक बनने की शुरुआत मैंने खुद से की है काश ऐसी ही शुरुआत देश का हर नागरिक करता तो एक दिन देश का रुप ही अलग होगा ।ये कहकर मैंने हाथ जोड़ लिए।
पर अचानक सारी महिलाएं उठकर जाने लगी और मैं एक बुरी मेज़बान की तरह चुपचाप देखती रही ।मन से बहुत ख़राब लग रहा कि जाते समय किसी ने मुझसे बात भी नहीं की। माना की मैं बुरी हूं पर इतनी बुरी भी नहीं की उनमे से एक ने भी मुझे जाते समय घर आने का न्योता भी नहीं दिया। खैर मन मसोस कर मैं अपने काम में लग गई क्यूंकि घर के काम ख़त्म करके शाम को बच्चों के साथ फर्स्ट एड की ट्रेंनिग जो करनी थी ।
आप से सिर्फ एक सवाल इस घटना में मेरी गलती क्या थी जो सब नाराज होकर चले गए । आपसे तो एक ही सवाल किया पर इस वक़्त हाथ कामों में और मन मस्तिष्क ढेरो सवालों से घिरे हुए हैं।जवाब दीजियेगा,..।
फिलहाल मन में सवाल ही सवाल
हम सुधरे तो सुधरेगा जग का हाल??
या जरुरी है जग पहले सुधर जाए
तो हम बदल लेंगे अपने घर का हाल,... प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment