हां!
हां!
हां!
ये बिलकुल सच है,..
गलती उसी की है,..
उसने
अपने दर्द को
कई परतों में दबा रखा था,..
सामान्य आदमी का
वहां तक पहुंचना संभव ही नहीं,..
क्यूंकि
लब पर हंसी,
आंखों में चमक,
चेहरे पर हसीन सजावट,
जिस्म पर खूबसूरत लिबास,..
और
उस पर
सबसे गज़ब
खूबसूरत लिबास के भीतर
एक औरत का जिस्म,..!!!!
अब बताओ
गलती किसकी????
भला इसके भीतर दिल
और दिल के भीतर दर्द तक
पहुंचेगा कौन????
एक औरत को
ये सब देखने के बाद
दूसरी औरत का दर्द तब दिखेगा
जब नज़र से
ईर्ष्या और स्पर्धा का चश्मा हटेगा,..!
और
एक मर्द
इस सब के आगे
भला क्यूं
कुछ देखना चाहेगा,..??
दरअसल
इन सारी परतों से नज़र हटाकर
सीधे दिल के दर्द तक पहुंचने के लिए
औरत और मर्द के दायरे से उठकर
इंसान बनना होगा,.
तब बनेगा
दिल से दिल का रिश्ता
जो जिस्म और लिबास से पहले
ख़ुशी और दर्द के एहसास को
महसूस कर पाएगा,..
सुनो!!
बहुत दिन हुए
इंसानों को
आपस में घुलते मिलते नहीं देखा,.
तुम कभी मिलो
तो मुझे भी मिलवाना,.
बड़ी तमन्ना है
ऐसे मंजर देखने की
जब
इंसान इंसान से मिलकर
ख़ुशी और दर्द बांटे,....प्रीति सुराना
(चित्र गूगल से साभार)
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