हां!!
नहीं किया जिक्र तुमसे
अपनी नासाज़ तबीयत का,..
नहीं की साझा तुमसे
अपने मन की बातें,.
रही दूर-दूर खफ़ा-खफ़ा सी तुमसे,..
जतलाई बेरुखी,
दिखाया बेगानापन,
और ओढ़ ली बेवजह की व्यस्तताएं,..
और
इस तरह
मैं बन जाना चाहती थी
तुम्हारी नज़रों में बेवफ़ा,..
क्यूंकि मुझे लगता है
मुझे बेवफ़ा मानकर
मुझे कोसते हुए जीना
तुम्हारे लिए थोडा आसान होगा,..
बनिस्बत
पल पल
मुझे ख़त्म होते हुए
देखने के,..
"शायद इसको भी प्रेम कहते हैं"
प्रीति सुराना
वाह
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