सबसे पहले जमीन में रोपी गई,..
फिर
सींची
संभाली
और बड़ी एहतियात से उगाई गई,...
फिर
फूली
फली
और तोड़कर सुखाई गई,..
फिर
पिसी
छनी
घोलकर भिगाई गई,..
इस तरह
बड़े जतन से
मेरे हाथों में
मेहंदी रचाई गई,...
और रंग जितना गहरा चढ़ेगा
साजन का प्यार उतना ज्यादा बढ़ेगा
लगाते लगाते मेहंदी
ये बात भी मुझे बताई गई,..
डर गई हूं तब से
हर पल निहारती हूं
रची हुई मेहंदी के उतरते हुए रंग से
सोचती हूं ऐसी कहानियां क्यूं बनाई गई,...
सुनो!!!
क्या तुम्हारे प्यार का रंग भी
यूंही बदसूरत और चितकबरा होकर उतर जाएगा
अगर नहीं तो प्रेम के श्रृंगार में ये मेंहदी क्यों लगाई गई,....प्रीति सुराना
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