Monday, 31 August 2015

मेज़बान

अभी बीता
खुशियों भरा एक दिन,..
मैंने और मेरे अपनों ने मिलकर
जीया इसे एक उत्सव की तरह,..
और फिर
इस उत्सव में शामिल
मेरे सभी अपने
बहुत सारा बिखरापन
मेरे घर आंगन में छोड़कर
अपने अपने आशियाने में लौट गए,..
इसलिए अब
मान लिया है मैंने
"खुशियां मेहमान की तरह ही होती हैं"
आती है और चली जाती हैं
मेहमानों की तरह ही
सब कुछ बिखरा बिखरा सा छोड़कर,.. आज जब
घर समेटने बैठी,
तो घर के हर कोने में
किसी न किसी की
यादों से जुड़े सामान
बिखरे पड़े मिले,...
घर को तो जैसे-तैसे सवांर लूंगी,
फिर से सजा लूंगी,..
पर इस
मन के आंगन का क्या करुं ???
जिसके हर कोने में
खट्टी-मीठी यादों
और मिलने की खुशियों के साथ
बिछुड़ने का दर्द भी
जहां तहां बिखरा पड़ा है,..
खैर !!!
ये मानव मन है ही ऐसा
जितना पाता है
उतना ही और पाना चाहता है,...
मुझे
फिर रहेगा इंतजार
ऐसे ही किसी समारोह का,
या किसी त्यौहार का,.
जो लेकर आए
फिर से यादों का कारवां,...
जिससे मैं भूल जाऊं
बिछोह के दर्द को,..
फिर अपनों से बिछड़ने का
कोई नया दर्द पाकर,..
क्योंकि जान गई हूं अब मैं
खुशियां मेहमान ही होती है,..
दुआ कीजियेगा
मैं बन सकूँ एक अच्छी मेज़बान,... प्रीति सुराना

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