Monday 20 July 2015

लो कान्हा,..

सुनो!!
रूठी थी तुमसे
चाहती थी
तुम मना लो,..
पर जानती थी
छलिया मैं तुमको
तुम मनाओगे नहीं,.
क्यूंकि
झुकना
तुम्हारी आदत नहीं,..
लेकिन
तुम रिझाओगे
मुझे बांसुरी की धुन से,..
और
मुझे आना ही होगा
सम्मोहित होकर
तुम्हारे पास,..
लो कान्हा!!!
मैं आ गई
सुनकर मुरली की तान,.
क्यूंकि
मुरलीधर
जानती हूँ तुम्हारी मुरली के
सारे रहस्य,...प्रीति सुराना

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