सुनो!!
अकसर
अकाल के बाद
सूखी जमीन को देखकर लगता है
जमीन बंजर हो गई है,.
जबकि
संभावनांए इंगित करती है
कहीं गहराई में कंही पल रहा है
कोई लावा,..
पर
जरा सी बारिश के आते ही
जमीन नम तो होती है
लेकिन बढ़ जाती है उमस,..
क्यूंकि
जमीन को ऊपर से आती बूंदे
शीतल करने की कोशिश करती हैं,..
पर अन्दर सुलगते लावे का ताप उसे वाष्पित करता है,..
हां !!
आज मैंने
खुद महसूस किया,
जमीन बारिश और लावे की
इस जटिल परिस्थिति को,..
क्यूंकि
अरसे बाद मेरे मन की जमीन पर
आंसुओं की चंद बूंदे बरसी,
और तभी से बढ़ गई मन की बेचैनी,..
शायद
मन की गहराई में दबे पड़े कई संताप,..
जो मौसम की तरह बदली परिस्थितियों में
निकल पड़े आसुओं के कारण उभर आए,..
तभी तो
रोकर मन शांत होने की बजाय
जाग उठे दबे हुए सारे दर्द,..
जो छुपा रखे थे सबसे,..मैंने जाने कबसे,..
पर सुनो,..,..!!
अच्छा ही हुआ
आज चंद बूंदे बरस गई,..
सुना है,..
दबे हुए लावे अकसर ज्वालमुखी बन जाते हैं,..
लेकिन
मैंने ये भी सुना है
ज्वलामुखी विपदाओं के साथ साथ
जमीन में छुपे हुई कीमती संपदाओं को भी बाहर लाता है,..
सच कहूं
आज मैं बहुत असमंजस में हूं,..
मेरे लिए ये आंसू अच्छे हैं
या मन की घुटन,..???
जो भी हो
आज फिर यही समझा है मैंने
हर चीज सिर्फ अच्छी या सिर्फ बुरी नही होती,..
बल्कि सिक्के के दो पहलुओं की तरह होती है,.. है ना !!!!!! ,... प्रीति सुराना
कल 08/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
aabhar apka ___/\__
Deleteबेहद सुन्दर रचना। मन को छू गई
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteMarmsparshi rachna... Dhero badhayi aur shubhkamnayein.
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