Friday, 20 June 2014

तुम हमेशा कहते हो ना,.

सुनो!
तुम हमेशा कहते हो ना,.
मैं तुम्हे हंसती हुई ही अच्छी लगती हूं...
बीते वक्त ने मुझे तुम्हे अच्छी लगने की खातिर
आसुंओं को छुपाकर हंसना सिखा दिया है,..

पर जाने क्यूं
आज याद आ रहा है,.
मां की गोद में सोने के लिये,
और पापा से वो लाल फ्राक वाली गुड़िया लेने की ज़िद पर,
ज़ोर ज़ोर से रोने वाला बचपन,..

और स्कूल में
टीचर दीदी की डांट पर सुबकने,..
दोस्तों की खींचा तानी पर चिढ़ने और तुनकने,..
घर में पप्पू और गप्पू पर खेल खेल मेंं
बात बात पर बिफरने वाला बचपन,..

और हां
तुम्हे याद है जब मैं नई नई आई थी,
इस घर में और तुम्हारे जीवन में
नए परिवेश में ढलते-ढलते,
कई बार डगमगाई,डरी,रोई,..

फिर
जब संभाल लिया हमनें रिश्ते को करीने से,
तब साड़ी,कंगन, शॉपिंग और मूवी के बहाने,
मनुहार के लालच में झूठमूठ मेरा रूठना और रोना
और तुम्हारा मुझे बाहों में लेकर मनाना,..

और 
हमारे प्रेम के अंश  ने जन्म लिया
उस पीड़ा के आंसुओं को हंसकर सहना,..
हमारे अंश की हर तकलीफ पर
तुम्हारे कंधों पर सिर रखकर रोना,..

हां!
याद आ गया मुझे आज सब कुछ,..
तभी एक दिन मुझे रोते देखकर 
तुमने कसम दी थी 'तुम रोया मत करो',
"तुम मुझे बस हंसती हुई अच्छी लगती हो"

तब से आज तक
तुम्हे अच्छी लगने की खातिर
मैंने अपने हर दर्द को अपनी मुसकान में छुपाया है,..
पर दुनिया में मैंने ऐसा कोई नही देखा 
जिसे कोई गम न हो,..

सुनो!
आज तुम अपनी दी हुई कसम वापस ले लो ना,..
मैं आज रोना चाहती हूं तुम्हारे कंधे पर सिर रखकर,
तुम्हारी गोद में छुपकर,
तुम्हारे सीने से लगकर,..

आज तो 
मेरे मनोचिकित्सक ने भी कह दिया है,
"आपको दवा की जरुरत नही है,
बस कभी कभी रो लिया कीजिये,.. 
कभी कभी रोना भी सेहत के लिये लाभदायक होता है,...." ,... प्रीति सुराना
(पेंटिग गूगल से साभार)

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