Saturday, 28 December 2013

"तो ग़ज़ल लिखती,.."

अगर कोई सिखाता तो ग़ज़ल लिखती,
ग़ज़ल क्या है बताता तो ग़ज़ल लिखती,

न मतला जानती हूं और ना मकता,
बहर क्या है बताता तो ग़ज़ल  लिखती,

पकड़ में ना रदीफ़ो काफ़िये आए,
समझ में जो मुझे आता ग़ज़ल लिखती,

छुपाकर जो रखी यादें जमाने से,
जताकर मैं जमानें को ग़ज़ल लिखती,

कहन में पीर कितनी हो पता होता,
बहाकर नीर आंखो से ग़ज़ल लिखती,,..प्रीति सुराना 

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-12-2013) को "शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    नव वर्ष की अग्रीम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    सादर...!!

    - ई॰ राहुल मिश्रा

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    1. dhanywad,.. rahul ji,.. apko bhi nav-varsh ki agrim subhkamnaen

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  2. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

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