Tuesday 10 December 2013

फिर इंद्रधनुष सजाए मैंनें,...

मुठ्ठी भर खुशियों की खातिर,...
झोली भर दर्द उठाए मैंनें,

पल-पल आंखों से सागर अश्कों के,...
बूंद-बूंद बहाए मैंने,

क्या हुआ कि इक सागर झलका,.
मेरे इन नैन कटोरों से,

पर तुझको पाकर जीवन में..
फिर इंद्रधनुष सजाए मैंनें,...प्रीति सुराना

10 comments:

  1. यही जीवन का सौन्दर्य है, यही जीवन का द्वन्द्व है।

    ReplyDelete
  2. कल 12/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. सुन्दर उदद्गार ....

    ReplyDelete
  4. वाह...सजा रहे ये सतरंगा सपना......
    बहुत सुन्दर!!

    अनु

    ReplyDelete