Friday, 13 December 2013

"असमंजस"


सुनो!!!

आज मैं यूं ही सोच रही,...

जैसे कुछ खोने के लिए जरूरी है कुछ पाना,..
किसी के टूटने के लिए जरूरी है किसी का जुड़ना,..

एक सच ये भी तो है,
कुछ मिटने के लिए जरूरी है कुछ होना,..

वैसे ही विश्वास भी उसी का टूटता है 
जो विश्वास करता है,..

और विश्वासघात भी वही करता है 
जिसपर विश्वास किया हो,..

इसलिए जिस पर विश्वास ही न किया हो 
उस पर कैसे लगाया जा सकता है विश्वासघात का आरोप,..

अरे
तुम क्यूं असमंजस में पड़ गए????

मुझ पर विश्वास करो
मुझे तुम पर पूरा विश्वास है,..

मैं तो हूं ही बावरी
कुछ भी सोचने बैठ जाती हूं,...

वैसे भी फिक्र क्यूं
कसौटी पर तो विश्वास है प्रेम नहीं,...

और हां!!!

सुनो ना ,...!!
मैं तुमसे प्रेम करती हूं,..,...प्रीति सुराना

2 comments:

  1. जब किसी भाव में जीने का निश्चय किया, उसके दूसरे छोर को तो देखना ही पड़ता है। सुन्दर कविता।

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