Monday 2 December 2013

मौन की भाषा

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 मौन की भाषा
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सुनो!!!


मैं
आखिर
पढ़ ही लेती हूं
हर बात,..

तुम्हारे
स्पर्श में प्यार,
मुस्कुराहट में खुशी,
पलकों तले नमी में छुपा दर्द,...

तुम्हारी
हंसी में व्यंग्य,
चमकती आंखों में शरारत,
लरजते होठों में झिझक,..

तुम्हारी
पेशानी की सिकन में परेशानी,
भींचती हुई मुट्ठीयों में बेबसी,
पिसते दांतों में गुस्सा,...

तुम्हारे साथ
जिंदगी के हर इम्तिहान में
सफल होने के लिए
कई कई बार पढ़ा है मैंने,...

तुम्हारे
एहसासों की किताब का
हर पाठ
और हर सवाल-जवाब,....

तब जाकर
सीख पाई हूं
पढ़ना
तुम्हारे मौन की भाषा,...

अब
तुम लाख छुपाओ दिल की बातें,
अपनें मौन में,
मुझे हर सवाल का जवाब आता है,..,...प्रीति सुराना

10 comments:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. मौन बहे सब तोड़,
    हृदय के तटबन्धों को छोड़

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  3. मौन तो मुखर हो कर बोलता है हमेशा .. समझने वाला होना चाहिए ..
    सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  4. बहुत संदर मौन के बोल...

    अद्भुत प्रस्तुति.

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  5. बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..

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  6. भावपूर्ण कविता !! आपने कभी ध्यान दिया मौन की भाषा के साथ-साथ एक दिल की भी भाषा होती है>> http://corakagaz.blogspot.in/2013/12/dil-ki-bhasha.html

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