सुनो
तुमने
सच कहा था
थक जाओगी
निभाते निभाते दुनियादारी,..
मैंने
सबकी अपेक्षाओं को
पूरा करने की
बहुत कोशिश की,.
पर
हर बार
मेरे किये को
तौला गया,.
अब/तब,
ऐसे/वैसे,
इतना/उतना,
क्या/क्यूं,...
अच्छे/बुरे,
कम/ज्यादा,
आवश्यक/अनावश्यक के
अनुमानित तराजू पर,..
हर बार
इस परीक्षा में
अनुत्तीर्ण घोषित किए जाने के
बाद भी,..
लादी गई
मुझ पर
कई कई
जिम्मेदारियां,..
हां
तुमने सच ही कहा था
जो जिम्मेदारी से भागता है
उसे लोग गैरजिम्मेदार कहते है,..
लेकिन
जो जिम्मेदारी उठाता है
लोग उसे जिन्दगी भर
भगाते ही रहते हैं,.. :p
:) "वाह रे दुनियादारी,.." :) ,... प्रीति सुराना
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
dhanywad
Deleteकल 30/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
bahut aabhar apka,.. :)
Deleteऐसी का नाम दुनियादारी है ....कहाँ तक भाग सकते है आखिर हम..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को |
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com