Friday, 15 November 2013

जरुरी तो नही,...

हर बात दिल की सबसे कहना जरुरी तो नही,..
जिससे कहना हो वो सुने भी जरुरी तो नही,...

मैं तो यूं ही बैठी थी तनहा खुद ही की तलाश में,..
पर यूं तनहा खामोश रहना मेरी मगरूरी तो नहीं,.. 

जिसे दिल ने चाहा हो जंहा में रब से भी ज्यादा,.
चाहे मुझे उतना वो भी ऐसी कोई मजबूरी तो नहीं,..

रहता है हर लम्हा जो मेरी सांसों में सरगम सा,..
मीलों का रास्ता भी दरमियां हो तो हो पर दूरी तो नहीं,..

माना नही होता सब कुछ मुकम्मल जिन्दगी में,..
पर जिंदगी ही जो नेमत मिली वो अधूरी तो नहीं,..

अधूरा रहना तो यूं भी ख्वाहिशों की फितरत ही है 'प्रीत',..
मिलकर भी न मिले तो ख्वाहिश मिलने की पूरी तो नही,....प्रीति सुराना

10 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (16-11-2013) "जीवन नहीं मरा करता है" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1431” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  3. भावो का सुन्दर समायोजन......

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  4. बहुत बढ़िया कृति ...

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  5. हम सभी,एक ही घाट के प्यासे हैं.
    सुंदर

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  6. खूबसूरत एहसास...

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  7. सुंदर रचना बधाई आपको ।

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  8. जो जिंदगी मिली है वो भी कम नहीं ... उसे जीना भी आसां नहीं ...
    लाजवाब गज़ल ...

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