बोए थे कुछ अरमानों के बीज,..
देखा तो सपनों की फसल हुई,..
नींद खुली तो सपनें ओझल थे,..
तब मन की हालत विकल हुई,..
मन को तो समझाया जैसे-तैसे,..
पर खुशियां जीवन में विरल हुई,..
निकलना चाहा यादों के डेरे से,..
पर हर कोशिश मेरी विफल हुई,..
किया अनसुना लोगों की बातों को,..
ये मुश्किलें तब कुछ सरल हुई,...
वैसे तो बहने थे आंसू बहुत,..
पर मेरी आंखें बस सजल हुई,..
यूं तो थी मेरी लंबी कहानी,..
लिखी तो बस इक गजल हुई,..,..प्रीति सुराना
bahut aabhar aapka
ReplyDeleteVireh ras ki adbhut rachna, ek vyavharic gazal.Teri zustaju me sambhala hai dard ke khawabo ko meri sajal aankhon ne !
ReplyDeleteसपनों की सुन्दर फसल, अरमानों का बीज।
ReplyDeleteकल्पनाओं पर हो रही, अब तो कितनी खीझ।।
very nice priti...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
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