जब दो लोग मिलते हैं
उनके बीच पनपता है
"एक रिश्ता"
लेकिन रिश्ते के
पनपने से परिपक्व होने के बीच
पनपती हैं कई जिम्मेदारियां,...
कई बार आती है परेशानियां,
उतार-चढ़ाव,
अच्छे-बुरे दौर,...
इन परिस्थितियों को
जो सह सके
वो ही बना पाते है कोई रिश्ता,..
वरना
उम्र भर का दर्द दे जाता है
अधूरा रिश्ता,..
और अनचाहे में निभाया भी जाए
उस अपरिपक्व रिश्ते को
तब जन्म लेता है "एक विकलांग रिश्ता"
जिसे न निभाया जाए
न तोड़ा जाए
रह जाती है सिर्फ एक टीस,...
जब मिले थे मैं और तुम
हमनें भी जीया
रिश्ते के पनपने और बनने का दौर,..
मानो जीया हो गर्भावस्था में
शिशु को गर्भ में आने से लेकर
जन्म देते हुए होने वाली प्रसव पीड़ा,..
मैंने निभाई
एक अच्छी मां की तरह भूमिका
और रिश्ते को पोसा,,,,
ताकि हमारे रिश्ते को
गर्भपात का दर्द
ना झेलना पड़े,.
और तब जाकर जन्मा
हमारे बीच एक पूर्ण स्वस्थ शिशु सा
परिपक्व रिश्ता,...
पर
हमारे रिश्ते में
ये कैसा दौर आया है???
किसी की नजर लगी है
या कोई संक्रमण हुआ है
वरना हमारा रिश्ता अपूर्ण या विकलांग तो नही था,..
फिर क्यूं
बार-बार लग रही हैं
हमारे रिश्ते में गांठे,....
बहुत दर्द होता
इस तरह रिश्ते को
बार-बार तोड़कर जोड़ने में,...
सुनो!!!
क्या तुम नही करते
इस पीड़ा को महसूस,..???
या हमारे " विकलांग हुए रिश्ते" के प्रति
मातृत्व का दायित्व भी
सिर्फ मुझे ही निभाना है,..बोलो ना,....???,...प्रीति सुराना
उनके बीच पनपता है
"एक रिश्ता"
लेकिन रिश्ते के
पनपने से परिपक्व होने के बीच
पनपती हैं कई जिम्मेदारियां,...
कई बार आती है परेशानियां,
उतार-चढ़ाव,
अच्छे-बुरे दौर,...
इन परिस्थितियों को
जो सह सके
वो ही बना पाते है कोई रिश्ता,..
वरना
उम्र भर का दर्द दे जाता है
अधूरा रिश्ता,..
और अनचाहे में निभाया भी जाए
उस अपरिपक्व रिश्ते को
तब जन्म लेता है "एक विकलांग रिश्ता"
जिसे न निभाया जाए
न तोड़ा जाए
रह जाती है सिर्फ एक टीस,...
जब मिले थे मैं और तुम
हमनें भी जीया
रिश्ते के पनपने और बनने का दौर,..
मानो जीया हो गर्भावस्था में
शिशु को गर्भ में आने से लेकर
जन्म देते हुए होने वाली प्रसव पीड़ा,..
मैंने निभाई
एक अच्छी मां की तरह भूमिका
और रिश्ते को पोसा,,,,
ताकि हमारे रिश्ते को
गर्भपात का दर्द
ना झेलना पड़े,.
और तब जाकर जन्मा
हमारे बीच एक पूर्ण स्वस्थ शिशु सा
परिपक्व रिश्ता,...
पर
हमारे रिश्ते में
ये कैसा दौर आया है???
किसी की नजर लगी है
या कोई संक्रमण हुआ है
वरना हमारा रिश्ता अपूर्ण या विकलांग तो नही था,..
फिर क्यूं
बार-बार लग रही हैं
हमारे रिश्ते में गांठे,....
बहुत दर्द होता
इस तरह रिश्ते को
बार-बार तोड़कर जोड़ने में,...
सुनो!!!
क्या तुम नही करते
इस पीड़ा को महसूस,..???
या हमारे " विकलांग हुए रिश्ते" के प्रति
मातृत्व का दायित्व भी
सिर्फ मुझे ही निभाना है,..बोलो ना,....???,...प्रीति सुराना
i like.i am intrested share with my all friends
ReplyDeletedhanywad
Deleteइस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-29/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -36 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
आभार
Deletedhanywad
ReplyDeleteकिसी एक को तो ढ़ोना ही होगा ....... गहरे भाव ..
ReplyDeletesahi kaha,... dhanywad
DeleteBehtreen laye me shbdo ko piroya he aap ne sadio se purush perdhan smaj me pyar ke rishte ki sarthak dastaan. To conceive, sustain and deliver a true sensitive love rishta between man & woman is identical to delivery of child by the woman where conception is easy and enjoyable fun for both but delivery is painful only to one.. Beautiful creation Ms Priti jee.
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