Monday, 21 October 2013

गमों का बोझ


दर्द को रखकर सिरहाने हर रोज सोती हूं,
आंसुओं को पलकों में छुपा कर भी रोती हूं,
क्या हुआ बेबात ही मेरे लब जो हंसते है,
मैं हंसी के सहारे ही गमों का बोझ ढोती हूं,....प्रीति सुराना

4 comments:

  1. बड़ी हसीन और खूबसूरत
    होती है यादे,
    भुलानेसे भी नहीं भुलाई
    जाती यह यादे,
    इन्सान को पलभर के लिए
    मुस्कुरा देती है यादे,
    कभी रुलाती और
    कभी हसती है यादे,
    हर जिद मिट जाती है
    लेकिन नहीं मिटती यादे

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  2. बहुत खूब ... हंसी के पीछे ग़मों का बोझ उठाना हर किसी के बस में नहीं ...

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  3. Rote hain hansne ko, Sote hain nirasha ko asha me bdlane ko..

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