Sunday, 20 October 2013

बन गई कविता... :p

लेकर बैठी हूं आज 
कलम,कागज,एहसास और अल्फाज,..
सोच रही हूं क्या लिखूं 
छंद,गीत,गजल या मन की आवाज,..

माना मेरे पास है
लेखन की सारी सुविधा,..
पर सच ये है
मुझे नही आती कोई विधा,..

चाहती हूं बस इतना
लिखूं जो भी उसमें हो भाव सरिता,..
अरे हुआ ये कैसा गजब
बातों ही बातों में बन गई कविता,... :p ,.... प्रीति सुराना

4 comments:

  1. Satye ki haqikat ko bhi ho tasdiq yhan kaise, aap ka mun hi haqikat ka rahnuma jo hai.

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  2. लेकिन सच हैं आती नही मुझे कोई भी विधा ...............पर आप बहुत उम्दा लिखती हैं

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  3. कवि प्रीति सुराना जा भाव से लाभालव आप की कविता नमन हैं

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  4. कवि प्रीति सुराना जा भाव से लाभालव आप की कविता नमन हैं

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