मन में उमड़ती भावनाओं ने,
ढूंढ लिया एक सुरक्षित कोना,..
मान लिया कि यही है नियम,
हर पल है कुछ पाना या खोना,..
फिर क्यूं यूं हर बार आंसुंओं से,
जीवन के हर लम्हे को भिगोना,..
क्यूं मन की इस मरूभूमि को,
बरसते बहते आंसुओं से धोना,..
क्यूं मरूभूमि को फिर सींचकर,
आशाओं के नए बीजों को बोना,..
क्यूं भूलना बार बार यही होगा,
अपेक्षाओं के कारण पडेगा रोना,..
जीवन को सिर्फ जीवन मानो,
समझो ना इसे कोई खिलोना,..
मिट्टी की हम सबकी काया,
फिर क्यूं मांगे हीरा या सोना,..
चाहो कुछ भी अपने जीवन से,
अंततः होगा वही जो है होना,..
इसलिए तरसती भावनाओं ने,
ढूंढ लिया मन का वो सूना कोना,..
जंहा जी सके सारी भावनाएं मेरी
मुस्कान की आड़ में छुपाकर रोना,.....प्रीति सुराना
apka bahut bahut aabhar
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