सुनो !!!
जब से
तुम नही हो
मेरे साथ
ये अकेलापन
साथ है
ये अकेलापन
जाने क्यूं हर बार
ढूंढ लाता है
दिल के तहखाने में बन्द
यादों का पिटारा
और तब
मैं सारे काम छोड़कर
खोलकर,उलट पुलट कर
बैठ जाती हूं
यादों का पिटारा
फिर ये यादें
तुम्हारे साथ बीते
हर पल को दोहराती हैं
तड़पाती हैं
और रूलाती हैं
इस बार
अकेलेपन को भूलने के
सोचा कुछ काम कर लूं
तुम्हारी यादों से जुड़े
निकाले कुछ पुराने सामान
सोच रखा था
इस दीवाली पर
घर की सफाई करते हुए
इस पिटारे की भी सफाई कर दूंगी
तिरोहित कर आऊंगी किसी नदी में,
उफ !!!
ये क्या
बिखरा पड़ा है
फिर सारा सामान
हमारी गृहस्थी का
तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी की तरह,....प्रीति सुराना
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