उसकी
बड़ी ख्वाहिश थी,....
रूतबा ऐसा हो
कि लोगों में धाक हो,
नाम ऐसा हो
कि नाम से हर काम हो,
धन बेहिसाब हो
और साधनों का अंबार हो,..
कुछ इस तरह जिये
कि आसपास सुविधाओं का सागर हो,..
और सच ऐसा हुआ भी
कि उसकी हर ख्वाहिश पूरी हुई,..
आज उसके आसपास
सागर है गहरा सा,..
और वह रह गया
सागर के बीच,..
अकेला
निर्जन टापू सा,.....प्रीति सुराना
बड़ी ख्वाहिश थी,....
रूतबा ऐसा हो
कि लोगों में धाक हो,
नाम ऐसा हो
कि नाम से हर काम हो,
धन बेहिसाब हो
और साधनों का अंबार हो,..
कुछ इस तरह जिये
कि आसपास सुविधाओं का सागर हो,..
और सच ऐसा हुआ भी
कि उसकी हर ख्वाहिश पूरी हुई,..
आज उसके आसपास
सागर है गहरा सा,..
और वह रह गया
सागर के बीच,..
अकेला
निर्जन टापू सा,.....प्रीति सुराना
सच्चाई बयां करती रचना
ReplyDeletedhanywad
Deleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeletedhanywad
Deleteअति सुन्दर.
ReplyDeletedhanywad
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