Tuesday 23 July 2013

तुम सावन नही



उमड़ घुमड़ कर 
मन ही मन में,

तुम मन को 
क्यूं तड़पाते हो,


सुनो आंसुओं
अब बरस पड़ो,

तुम सावन नही 
जो तरसाते हो,...... प्रीति सुराना

1 comment:

  1. प्रशंसनीय रचना - बधाई
    शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)

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