Wednesday, 3 July 2013

मैंने ही खुद को ,...

कई बार बिखरी हूं 
फिर मैंने ही 
खुद को समेटा है,...

कई बार रूठी हूं 
फिर मैंने ही 
खुद को मनाया है,..

जान लिया कोई नही है,
मुझको समेटने 
या मनाने वाला,...

इसलिए जब सपने टूटे 
खद के टूटने से मैंने ही 
खुद को बचाया है,...प्रीति सुराना

4 comments:


  1. इसलिए जब सपने टूटे
    खद के टूटने से मैंने ही
    खुद को बचाया है,...

    bahut sundar

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  2. man ki baat kehti rachna...sundar

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  3. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरेया

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  4. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

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