धरती और अंबर के बीच
कुछ अधूरी इच्छाएं बिखेरे,
मन में हर पल कुछ पाने
या खोने की कशमकश के घेरे,
कहीं सूरज के उजाले में
पंछियों की चहक सबेरे सबेरे,
वहीं चांद और सितारों की
आड़ में दुबके हुए अंधेरे,
दिल और दिमाग के बीच
कुछ अनसुलझे सवालों के फेरे,
कहीं खुशियों का रेगिस्तान
वहीं गमों के बादल घनेरे,
इन्ही सब के बीच कंही
इंद्रधनुषी अरमानों के बसेरे,
मानों सृष्टि ने फैला रखे हों
कण कण में "सपनों के डेरे",.......प्रीति सुराना
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [01.07.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1293 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें ....
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण प्रस्तुति. बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली अभिव्यक्ति...बहुत खूबसूरत....शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुभकामनायें
बहुत ही शानदार रचना..
ReplyDeleteक्या बात, बहुत सुंदर
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