Thursday, 25 April 2013

"अब लौट भी आओ":--






सुनो!!!
वक्त की रफ्तार भी 

कितनी अजीब है ना!!

यूं तो 
एक लम्हा भी 
गुजरता है 
तुम्हारे बिन,..
तो सदियों का 
गुमान होता है,...

और 
जो तुम चलते रहे
हमकदम बनकर साथ,.. 
तो सालों का सफर भी 
लम्हों में 
सिमट गया सा लगता है,..

सालों पुराने खतों में 
आज भी वही ताजगी 
वही खुशबू है,..
मन में कितनी तहों के नीचे 
दबे एहसासो ने मचलकर 
ये महसूस कराया,...

आज तुम्हारी गैरमौजूदगी में
यादों के एलबम में 
सजी तस्वीरों ने,..
तुमसे दूरी के दर्द को मिटाते हुए
इंतजार के पलों को 
इतना मधुर बना दिया,..

"अब लौट भी आओ"
इन सालों के सफर को 
मैं फिर जीना चाहती हूं,..
जिन्हे जिया है मैंनें
अभी-अभी 
चंद लम्हों में,....प्रीति सुराना

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