Wednesday 10 April 2013

"कथा की व्यथा"



"हां!

मैं जानती हूं,
जो प्रबल प्रेम में होता है,
उसका मन 
बावरा सा हो जाता है,...

सुने हैं किस्से मैंने भी 
राधा के समर्पण के,
मीरा की दीवानगी के,
बैजू के बावरेपन के 
लैला-मजनूं,ऱोमियो-जूलियट,
सोहनी-महिवाल की प्रेम कहानियां भी,
माना की इन सारी कथाओं के अंत 
सुखद नही थे,
पर इन रिश्तों ने रचा है 
इतिहास,....

इनके अधूरे प्रेम की 
प्रगाढ़ता और समर्पण 
और 
संबंधों की पूर्णता,
सच्चे प्रेमी ही समझ सकते हैं,..
तभी तो आज भी 
प्रेमी युगल चाहते हैं,.. 
अपने बीच इनमें से ही 
किसी जोड़ी की तरह का 
प्रबल प्रेम,... 

मैंने 
अकसर उसे भी 
प्रेम में आकंठ 
डूबा हुआ देखा है,.. 
उसके प्रेमी को अकसर पुकारते सुना है,
"पगली" "दीवानी" "बावरी",..
मैं रही हू साक्षी 
उन दोनों के
प्रबल और आत्मिक समर्पण से 
परिपूर्ण प्रेम की,...

आज भी 
दोनों जी रहें हैं 
अपने-अपने दायरे में,.. 
एक खुशहाल 
और 
सफल "दिखनेवाला" जीवन,...
पर जिसने भी सुनी है 
उनकी प्रेम कहानी वो जानता है,..
दोनो के मन की पीड़ा
और छटपटाहट,..

सुनो! 
क्या आजकल प्रेम में 
दीवानगी 
बावरेपन 
या पागलपन को 
मानसिक विक्षिप्तता कहा जाता है...
सुना है 
आजकल 
उन दोनों की उदासियों का हल 
अलग अलग मनोरोग विशेषज्ञ ढूंढ रहे हैं,..

तुम्ही बताओ ना!!
क्या बिना प्रेम किए
कोई समझ पाएगा,..
उस अमर प्रेम की
"कथा की व्यथा",.......प्रीति सुराना

12 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  2. आज भी
    दोनों जी रहें हैं
    अपने-अपने दायरे में,..
    एक खुशहाल
    और
    सफल "दिखनेवाला" जीवन,...
    पर जिसने भी सुनी है
    उनकी प्रेम कहानी वो जानता है,..
    दोनो के मन की पीड़ा
    और छटपटाहट,..
    आपने अपनी पूरी कविता में कहीं इस बात का जिक्र नहीं किया कि उन दोनों की छटपटाहट का कारण क्या है? यह भी स्पष्ट हो जाता तो पाठक शायद ज्यादा संतुष्ट होता।
    इस सुंदर रचना के लिए आपको बधाई।

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  3. बहुत सुन्दर....बेहतरीन रचना...
    पधारें "आँसुओं के मोती"

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  4. यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....

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