सब कहते हैं
दोस्त और अपनों से
कैसा "थैंक्स" और कैसा "सॅारी"
पर कभी सोचा
कि कोई खुशी देने वाला
या कोई दर्द देनेवाला
कोई अपना ही होता है,....
मैं सोचती हूं
जब हमें गैरों से
न कोई अपेक्षा होती न रिश्ता तो
कैसा "थैंक्स" और कैसा "सॅारी"
मुझे लगता है
अपनो से कुछ पाया तो आभार
और अपनो का दिल दुखाया तो
क्षमा दूरियां मिटाती है
जब अपनों से
हम ये औपचारिकता वाजिब नही मानते
औरजब गैरों से
नजीकियों या दूरियों की परवाह नही
तो
ये औपचारिता गैरों से ही क्यूं...?????
आपको क्या लगता है,..................???????,....प्रीति सुराना
अति सुन्दर लिखा है..
ReplyDeletedhanywad
Deleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
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dhanywad
Deleteमुझे लगता है
ReplyDeleteअपनो से कुछ पाया तो आभार
और अपनो का दिल दुखाया तो
क्षमा दूरियां मिटाती है
सुन्दर सोच
आप भी मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
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dhanywad
Deleteबात तो बिलकुल सही है .....वाकई
ReplyDeleteएक नजर इधर भी डालेगीं .मेरे ब्लॉग (स्याही के बूटे) पर ..आपका स्वागत है
http://shikhagupta83.blogspot.in/
dhanywad
ReplyDeleteमुझे लगता है
ReplyDeleteअपनो से कुछ पाया तो आभार
और अपनो का दिल दुखाया तो
क्षमा दूरियां मिटाती है
कुछ अच्छा सोचा जाये तो उसमें बुरा क्या है ...
सुन्दर प्रस्तुति। :)
ReplyDeleteनये लेख :- समाचार : दो सौ साल पुरानी किताब और मनहूस आईना।
एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) : ब्लॉगवार्ता।
thanks
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