मन आज उदास है
बार बार भीगी पलकों को
छुपाती हूं तुमसे
और
अकेले में जाकर
सुबक-सुबक कर रोती हूं
मन से ये चाहती हूं
कि मुझे रोता देखकर
कंही से तुम आ जाओ
और समेट लो अपनी बांहों में
और वही दर्द जान लो
जो मैंने तुसे छुपाया था,..
कितनी पागल हूं ना मैं
तुमसे छुपाया दर्द
तुम्ही से बांटना चाहती हूं
क्या करूं तुमसे प्यार करती हूं
इसलिए
अपना दर्द तुम्हे दे नहीं सकती
और
तुम पर जितना हक है
उतना किसी और पर नही ,....प्रीति सुराना
बहुत ही भावपूर्ण कविता,आभार.
ReplyDeletedhanywad
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
प्रेम में ऐसी दुविधा की स्थिति होती ही है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
सादर !
dhanywad
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (10-03-2013) के चर्चा मंच 1179 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeletedhanywad
Deleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteशुभकामनायें -
हर हर बम बम
dhanywad
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletedhanywad
Deleteसुंदर भाव बधाई
ReplyDeletehttp://guzarish66.blogspot.in/2012/10/blog-post_16.html
dhanywad
Deleteबहुत सुन्दर रचना... महाशिवरात्रि की शुभकामनायें
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