जब जब
देखती हूं बादलों को बेमौसम मंडराते,
मेरे हिस्से के थोड़े से आसमान पर,...
समझ जाती हूं
आज सूरज का मन आज उखड़ा हुआ होगा,
वो गुस्से में तमतमाया होगा,...
हवाओं ने जाकर सागर को बताया होगा,
सागर मिला होगा जाकर किनारे पर धरती से,
की होगी कानाफूसी सूरज की गर्ममिज़ाजी पर,
सूरज की नजर पड़ी होगी उन दोनों पर
तो उढ़ेल दी होगी
उन पर अपनी तमतमाहट सारी,
खौला होगा
धरती के उस किनारे का गीला हिस्सा,
जो सागर से सूरज की बात कर रहा था,
उड़ी होगी वाष्प बनकर नमी वंहा से,
और तैय्यार होगी सूरज के गुस्से की आग मे
जलकर भस्म हो जाने को,
तभी अचानक हवा को महसूस हुई गलती अपनी
कि गुस्से की ये आग मैंने ही फैलाई,...
उसने झट से वाष्प को आगोश मे लेकर शीतल किया,......
तब दोनों ने बादलों में तबदील होकर
सूरज के सामने घुटने टेक दिए,...कहा लो पकड़े कान
हवा सागर और धरती खड़े हैं सामने तुम्हारे,...
छोड़ दो गुस्सा यारा
हम य़ार है तुम्हारे,...
सूरज का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ
जानते हो अब सूरज और बादल मिलकर रोएंगे
और दूर क्षितिज पर धरती आकाश और सागर के किनारे
इस प्रेम मिलन का दृश्य अपना इंद्रधनुषी रंग प्रतिबिम्बित करेगा,....
ऐसे मौसम में निकल आती हूं घर की छत पर
देखने को प्रकृति का ये अद्भूत नजारा
और महसूस करती हूं अपनी ही "आपबीती" प्रकृति के साथ,....
क्योंकि
ऐसा ही इंद्रधनुष अकसर मेरे आंगन में भी बनता है
मेरे और मेरे अपनों की भावाओं से रंगा,.......प्रीति सुराना
आपका ब्लॉग अच्छा लगा और ज्वाइन भी कर रही हूँ.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
thanks
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteबेचारा सूरज
Deleteतभी अचानक हवा को महसूस हुई गलती अपनी
ReplyDeleteकि गुस्से की ये आग मैंने ही फैलाई,...
उसने झट से वाष्प को आगोश मे लेकर शीतल किया,....
lajawab karti kruti****
बेचारा सूरज
Deleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
ReplyDeleteबेचारा सूरज
Deleteबेचारा सूरज
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