हर जगह चेतावनी
पढ़ते-सुनते
"पानी बचाओ","पानी बचाओ"
गरमी की आहट पाते ही,
कुछ यूं असर हुआ,..
आंसुओं ने बहना छोड़ दिया,..
आजकल जमा कर रही हूं,
उन आंसुओं को
जज़बातों के प्याले में,....
ताकि दर्द के तपते मौसम में
मेरे मन का पंछी
प्यासा न रह जाए,.....प्रीति सुराना
भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteThanks
Deleteपानी एक.....
ReplyDeleteअर्थ अनेक
सुन्दर रचना....
सादर
पानी तेरे कई रंग ...
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर ..
Thanks
DeleteThanks
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-03-2013) के चर्चा मंच 1186 पर भी होगी. सूचनार्थ
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ReplyDeleteपानी गए न उबरे मोती मानस चुन
latest postऋण उतार!
Thanks
Deleteबहुत खूब भाव पूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
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